मंगलवार, 5 मई 2015

dwipadika: sanjiv

द्विपदिका:

अपनी बात

अपनी बात geet
Photo by Taymaz Valley 
पल दो पल का दर्द यहाँ है पल दो पल की खुशियाँ हैं
आभासी जीवन जीते हम नकली सारी दुनिया है
जिसने सच को जान लिया वह ढाई आखर पढ़ता है
खाता पीता सोता है जग हाथ अंत में मलता है
खता हमारी इतनी ही है हमने तुमको चाहा है
तुमने अपना कहा मगर गैरों को गले लगाया है
धूप-छाँव सा रिश्ता अपना श्वास-आस सा नाता है
दूर न रह पाते पल भर भी साथ रास कब आता है
नोंक-झोंक, खींचा-तानी ही मैं-तुम को हम करती है
उषा दुपहरी संध्या रजनी जीवन में रंग भरती है
कौन किसी का रहा हमेशा सबको आना-जाना है
लेकिन जब तक रहें न रोएँ हमको तो मुस्काना हैलम्बी डगर
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