रविवार, 10 जून 2012

मुक्तक: --संजीव 'सलिल'

मुक्तक: -- संजीव 'सलिल'


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१.
हे विधि हरि हर प्यारे भारत को देना ऐसी औलाद.
मक्खन जैसा मन हो जिसका, तन हो दृढ़ जैसे फौलाद.
बोझ न हो जो इस धरती पर, बने सहारा औरों का-
हर्ष लुटाये, दुःख-विषाद जो विहँस सके कंधों पर लाद..
२.
भारत आत्म प्रकाशित होकर सब जग को उजियारा दे.
हर तन को घर आँगन छत दे, मन को भू चौबारा दे.
जड़-चेतन जो जहाँ रह रहे, यथा-शक्ति नित काम करें-
ऐसा जीवन जी जायें जो जन्म-जन्म जयकारा दे..
३.
कंकर में शंकर को देखें, प्रलयंकर से सदा डरें.
किसी आँख के आँसू पोछें, पीर किसी की तनिक हरें.
ज्यादा जोड़ें नहीं, न ही जो बहुत जरूरी वह तज दें-
कर्म-धर्म का मर्म जानकर, जीवन-पथ पर शांति वरें..
४.
मत-मत में अंतर को कोई मंतर दूर न कर सकता.
मन-मन में कुछ भेद न हो सत्पथ कोई भी वर सकता.
तारणहार न कोई पराया, तेरे मन में ईश्वर है-
दीनबंधु बन नर होकर भी तू सुरत्व को वर सकता..
५.
कण-कण में भगवान समाया, खोजे व्यर्थ दूर इंसान.
जैसे थाली में परसे तज, चित्रों में देखे पकवान.
सदय रहे औरों पर, दुःख-तकलीफें गैरों की हर ले-
सुर धरती पर आकर नर का, स्वयं करे बरबस गुणगान..
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