रविवार, 14 फ़रवरी 2010

दोहा गीत: धरती ने हरियाली ओढी --संजीव 'सलिल'

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार.,

दिल पर लोटा सांप

हो गया सूरज तप्त अंगार...

*

नेह नर्मदा तीर हुलसकर

बतला रहा पलाश.

आया है ऋतुराज काटने

शीत काल के पाश.


गौरा बौराकर बौरा की

करती है मनुहार.

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार.

*

निज स्वार्थों के वशीभूत हो

छले न मानव काश.

रूठे नहीं बसंत, न फागुन

छिपता फिरे हताश.


ऊसर-बंजर धरा न हो,

न दूषित मलय-बयार.

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार....

*
अपनों-सपनों का त्रिभुवन

हम खुद ना सके तराश.

प्रकृति का शोषण कर अपना

खुद ही करते नाश.


जन्म दिवस को बना रहे क्यों

'सलिल' मरण-त्यौहार?

धरती ने हरियाली ओढी,

मनहर किया सिंगार....
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