बुधवार, 8 अप्रैल 2009

नव गीत- कैसे देखें सपना?... आचार्य संजीव 'सलिल'

नव गीत-

आचार्य संजीव 'सलिल',

दिन भर मेहनत

आंतें खाली,

कैसे देखें सपना?...


दाने खोज,

खीजता चूहा।

बुझा हुआ है चूल्हा।

अरमां की

बरात सजी-

पर गुमा

सफलता दूल्हा।

कौन बताये

इस दुनिया का

कैसा बेढब नपना ?...


कौन जलाये

संझा-बाती

गयी माँजने

बर्तन।

दे उधार,

देखे उभार

कलमुंहा सेठ

ढकती तन।

नयन गडा

धरती में

काटे मौन

रास्ता अपना...


ग्वाल-बाल

पत्ते खेलें

बलदाऊ

चिलम चढाएं।

जेब काटता

कान्हा-राधा

छिप बीडी

सुलगाये।

पानी मिला

दूध में जसुमति

बिसरी माला जपना...


बैठ मुंडेरे

बोले कागा

झूठी आस

बंधाये।

निठुर न आया,

राह देखते

नैना हैं

पथराये।

ईंटों के

भट्टे में

मानुस बेबस

पड़ता खपना...


श्यामल 'मावस

उजली पूनम,

दोनों बदलें

करवट।

साँझ-उषा की

गैल ताकते

सूरज-चंदा

नटखट।

किसे सुनाएँ

व्यथा-कथा

घर की

घर में

चुप ढकना...

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8 टिप्‍पणियां:

  1. सच्चा और अच्छा गीत है।
    शब्द पुष्टिकरण हटाएँ।

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  2. आपने तो कई साड़ी बातें कह दी अपनी इस रचना में ...खूबसूरती इसे ही तो कहते हैं

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  3. ब्लॉग जगत में और चिठ्ठी चर्चा में आपका स्वागत है . आज आपके ब्लॉग की चर्चा समयचक्र में ..

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  4. कितनी सही सटीक विवेचना की है आपने......अद्वितीय रचना...बहुत बहुत सुन्दर !! शब्द भाव सीधे ह्रदय भूमि पर आ आकर जम जाते हैं...वाह !!

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  5. आप सभी को उत्साह बढ़ने के लिया धन्यवाद. - सलिल

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